Monday 10 January 2022

The roots of child marriage

 


बाल विवाह की जड़ें वंचित जातियों की बदहाल जीवन स्थितियों में है, शादी की कानूनी आयुसीमा में नहीं!

बाल विवाह कानून को बने लम्बा समय हुआ। आज दशकों बाद बाल विवाह कानून में संशोधन करके लडकियों के विवाह की आयुसीमा को न्यूनतम उम्र 18 वर्ष से बढ़ाकर लडकों की उम्र के बराबर 21 वर्ष किए जाने का प्रस्ताव है। क्या यह जानने-समझने की जरूरत नहीं है कि आज भी बाल विवाह जैसी कुप्रथा किन जाति विशेष के व्यवहार में है? उनकी सामाजिक आर्थिक विकास की क्या स्थिति है? जिन जातियों में आज बाल विवाह की घटनाएं नहीं हो रही हैं क्या वे सिर्फ कानून के भय से बाल विवाह की कुप्रथा से मुक्त हो पाए या समाज की मुख्यधारा ने उन्हें प्रभावित किया और अपने से जोड़ा जिसके बाद उन्होंने बाल विवाह को ख़ारिज किया और बाल विवाह के कारण होने वाले तमाम समस्याओं से मुक्त हो पाए?

यह एक गम्भीर विचारणीय प्रश्न है। इन प्रश्नों के समाधान में ही बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अंत है, न कि लड़कियों के विवाह की उम्र को बढ़ाया जाना जबकि हमारे पास ऐसा कोई ठोस व्यवस्था दिखाई नहीं पड़ती है कि यदि लड़कियों के विवाह की उम्र 21 वर्ष हो जाए तो इस अवधि में वे क्या करेंगी और कहां अपने को व्यस्त रखेंगी। देश, समाज और परिवार का दृष्टिकोण और संसाधन उनकी कितनी मदद करेंगे?  

https://junputh.com/open-space/menace-of-child-marriage-is-linked-to-the-marginalised-groups/

No comments:

Post a Comment