Saturday 1 June 2013

बनारसी साड़ी के बुनकरों के बच्चों की कुपोषण और भूख से मौत आज भी जारी है




बनारसी साड़ी के बुनकरों के बच्चों की कुपोषण और भूख से मौत आज भी जारी है, वाराणसी के बजरडीहा, लोहता, कोटवा, धन्नीपुर इलाकों में बच्चों की कुपोषण और भूख से मौत की घटनाएँ इस सच को उजागर कर रही हैं |
विश्व विख्यात बनारसी सिल्क साड़ी के बुनकर पिछले एक दशक से तंगहाली से जूझ रहे हैं , एक तरफ  आजीविका के संकट के कारण पैदा हुई आर्थिक तंगी से बुनकर परिवार बुनियादी जरूरतों के लिए कर्ज पर जीवन जीने को मजबूर हैं, वहीं दूसरी तरफ शासन प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की अनदेखी के कारण मुस्लिम बाहुल्य इलाकों की हालत बद से बदत्तर है | सरकारी सार्वजनिक सेवाएँ यथा -  पीने योग्य पानी, सीवर निकासी , सडको व गलियों की साफ सफाई व्यवस्था, सरकारी राशन की दुकाने, बाल पोषण व विकास की योजनाएं,  प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ,  प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा व्यवस्था, बिजली की उपलब्धता, सामाजिक विकास की योजनाओं की वास्तविक लाभार्थियों तक पहुंच की स्तिथि विभागीय निगरानी, मूल्यांकन और जवाबदेही की कमी के कारण बदहाल है |   
बुनकर परिवारों में व्यस्क जहाँ एक वक्त ही आधे पेट खाना खाकर जीवन जी रहे हैं, वहीं बच्चें जिन्हें शारीरिक और मानसिक विकास के लिए अधिक मात्रा में पोषण युक्त आहार की आवश्यकता है वह कैसे पूरा होगा |  इसका सीधा प्रभाव बच्चों की सेहत पर पड़ता दिखाई दे रहा है, वे गम्भीर रूप से कुपोषणग्रस्त हो कर वे कुपोषण जनित बीमारी एनीमिया, खून की कमी, श्वसन सम्बन्धी रोग टीबी आदि से जूझ रहे हैं |
बुनकर संगठनो द्वारा पैरवी के बाद राजनैतिक हित के मद्देनजर केंद्र सरकार द्वारा बुनकरों के कल्याण के लिए बड़ी मात्रा में बजट तो जरुर आया लेकिन वह गरीब बुनकरों की आर्थिक स्थिति  और आजीविका को बढ़ाने में  कम मददगार हुआ और बिचौलियो की कमाई का जरिया कहीं अधिक बना |  जिससे बुनकरों की बुनियादी हालात में कोई विशेष बदलाव नही हो सका है | 

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